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Piramidon Ki Tahon Mein

About Piramidon Ki Tahon Mein

सुमन केशरी का काव्य संसार विस्तृत है यह विस्तार क्षैतिज भी है और उर्ध्वाधर भी वे गम-ए-दौराँ तक भी जाती हैं और ग़म-ए-जाना तक भी वह भौतिक संसार के चराचर दुखों की शिनाख्त के लिए मिथकों से स्वपनो तक भटकती हैं, तो आत्मा के आयतन के विस्तार के लिए रोज़-ब-रोज की जददोजेह्रद में भी मुब्तिला होती हैं । लगभग तीन दशकों के अपने सक्रिय जीवन में उन्होंने लगातार अपने समय और समाज की हलचलों को उनकी जटिल बिडम्बनाओं के साथ दर्ज करने का प्रयास तो किया ही है साथ ही एक स्त्री के लिए, जो साझा आर अलग अभिधार्थ हो सकते हैं, उन्हें बहुत स्पष्ट तौर पर अभिलक्षित भी किया हैं । पिरामिड की तहों के घुप्प अँधेरों में 'जहॉ नहीं हैं एक बूँद जल भी तपंण को' रोशनी के कतरे तलाश कर मनुष्यता के लिए जीवन रस संचित करन का अपनी इस कोशिश में परम्परा के साथ उनका सम्बन्ध द्वंद्वात्मक हैं एक ओर गहरा अनुराग तो दूसरी ओर एक सतत असंतोष । 'शब्द और सपने' जैसी कविता में सुमन केशरी का चिंताओं का सबसे सघनित रूप दृष्टिगत होता है छोटे-छोटे नौ खंडों में बँटी यह लम्बी कविता अपने पूरे वितान में पाठक के मन में भय ही नहीं पैदा करती बल्कि समकालीन वर्तमान का एक ऐसा दृश्य निर्मित करती हैं जहॉ इसके शिल्प में अंतर्विन्यस्त बेचैनी पाठक की आत्मा तक उतरकर मुक्ति की चाह और उसके लिए मनुष्यता के आखिरी बचे चिन्हों को बचा लेने का अदम्य संकल्प भी भरती है । स्त्री उनके काव्य ज़गत का अभिन्न हिस्सा है 'माँ की आँखों के जल में तिरने' की कामना के साथ, अपने जीवन में मुक्ति और संघर्ष करती स्वप्नों से यथार्थ के बीच निरन्तर आवाजाही करती 'किरणों का सिरा थाम लेने' का स्वप्न देखती वह यह भी जानती है कि 'चोंच के स्पर्श बिना घर नहीं बनता' और यह भी कि 'औरत ही घर बनाती है/पर जब भी बात होती है घर की/तो वह हमेशा मर्द का ही होता है ' इस स्त्

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  • Language:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789388183116
  • Binding:
  • Hardback
  • Pages:
  • 112
  • Published:
  • August 31, 2018
  • Dimensions:
  • 152x11x229 mm.
  • Weight:
  • 336 g.
Delivery: 2-3 weeks
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Description of Piramidon Ki Tahon Mein

सुमन केशरी का काव्य संसार विस्तृत है यह विस्तार क्षैतिज भी है और उर्ध्वाधर भी वे गम-ए-दौराँ तक भी जाती हैं और ग़म-ए-जाना तक भी वह भौतिक संसार के चराचर दुखों की शिनाख्त के लिए मिथकों से स्वपनो तक भटकती हैं, तो आत्मा के आयतन के विस्तार के लिए रोज़-ब-रोज की जददोजेह्रद में भी मुब्तिला होती हैं । लगभग तीन दशकों के अपने सक्रिय जीवन में उन्होंने लगातार अपने समय और समाज की हलचलों को उनकी जटिल बिडम्बनाओं के साथ दर्ज करने का प्रयास तो किया ही है साथ ही एक स्त्री के लिए, जो साझा आर अलग अभिधार्थ हो सकते हैं, उन्हें बहुत स्पष्ट तौर पर अभिलक्षित भी किया हैं । पिरामिड की तहों के घुप्प अँधेरों में 'जहॉ नहीं हैं एक बूँद जल भी तपंण को' रोशनी के कतरे तलाश कर मनुष्यता के लिए जीवन रस संचित करन का अपनी इस कोशिश में परम्परा के साथ उनका सम्बन्ध द्वंद्वात्मक हैं एक ओर गहरा अनुराग तो दूसरी ओर एक सतत असंतोष । 'शब्द और सपने' जैसी कविता में सुमन केशरी का चिंताओं का सबसे सघनित रूप दृष्टिगत होता है छोटे-छोटे नौ खंडों में बँटी यह लम्बी कविता अपने पूरे वितान में पाठक के मन में भय ही नहीं पैदा करती बल्कि समकालीन वर्तमान का एक ऐसा दृश्य निर्मित करती हैं जहॉ इसके शिल्प में अंतर्विन्यस्त बेचैनी पाठक की आत्मा तक उतरकर मुक्ति की चाह और उसके लिए मनुष्यता के आखिरी बचे चिन्हों को बचा लेने का अदम्य संकल्प भी भरती है । स्त्री उनके काव्य ज़गत का अभिन्न हिस्सा है 'माँ की आँखों के जल में तिरने' की कामना के साथ, अपने जीवन में मुक्ति और संघर्ष करती स्वप्नों से यथार्थ के बीच निरन्तर आवाजाही करती 'किरणों का सिरा थाम लेने' का स्वप्न देखती वह यह भी जानती है कि 'चोंच के स्पर्श बिना घर नहीं बनता' और यह भी कि 'औरत ही घर बनाती है/पर जब भी बात होती है घर की/तो वह हमेशा मर्द का ही होता है ' इस स्त्

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