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Sindhi Ki Lokpriya Kahaniyan

About Sindhi Ki Lokpriya Kahaniyan

बाग्ला साहित्य बड़ा सरस और क्रांतिकारी रहा है। बांग्ला में उपन्यास तथा कहानी विधा को खूब प्रश्रय मिला। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के साथ-साथ छोटी कहानियाँ भी लिखते रहे। स्वर्णकुमारी देवी एवं कुछ अन्य महिलाएँ भी पत्र-पत्रिकाओं में बांग्ला कहानियाँ प्रकाशित करवाती रहीं। किंतु बांग्ला कहानी, गल्प-रचना के आदर्श रूप का प्रकाशन 1877 ईस्वी में प्रकाशित 'रामेश्वरेर अदृश्य' नामक कहानी द्वारा हुआ, जिसे संजीव चंद चट्टोपाध्याय ने प्रकाशित करवाया था। अंग्रेजी लघु-कथाओं के समानांतर बांग्ला कहानी का अपना खुद का रचना-विधान-शिल्प और कथ्य सर्वप्रथम कवि रवींद्रनाथ ठाकुर की कहानी 'क्षुधित पाषाण' से सन् 1890 ई. में स्वाभाविक रूप से संरचित हुआ। कहानी की आकृति और प्रकृति निश्चित हो जाने के उपरांत बांग्ला कहानी क्रमश एक से एक ऊँचाइयाँ छूती गई। ऐसे ही कथारस से परिपूर्ण बांग्ला के श्रेष्ठ कथाकारों की लोकप्रिय कहानियाँ इस संग्रह में संकलित हैं। ये कहानियाँ एक ओर जहाँ बांग्ला समाज के उत्थान, विसंगति एवं ऊहापोह को दिग्दर्शित करती हैं, वहीं रोचक होने के कारण पाठकों का भरपूर मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन भी करती हैं।

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  • Language:
  • English
  • ISBN:
  • 9789390923953
  • Binding:
  • Hardback
  • Pages:
  • 178
  • Published:
  • February 7, 2022
  • Dimensions:
  • 140x216x14 mm.
  • Weight:
  • 376 g.
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Description of Sindhi Ki Lokpriya Kahaniyan

बाग्ला साहित्य बड़ा सरस और क्रांतिकारी रहा है। बांग्ला में उपन्यास तथा कहानी विधा को खूब प्रश्रय मिला। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के साथ-साथ छोटी कहानियाँ भी लिखते रहे। स्वर्णकुमारी देवी एवं कुछ अन्य महिलाएँ भी पत्र-पत्रिकाओं में बांग्ला कहानियाँ प्रकाशित करवाती रहीं। किंतु बांग्ला कहानी, गल्प-रचना के आदर्श रूप का प्रकाशन 1877 ईस्वी में प्रकाशित 'रामेश्वरेर अदृश्य' नामक कहानी द्वारा हुआ, जिसे संजीव चंद चट्टोपाध्याय ने प्रकाशित करवाया था। अंग्रेजी लघु-कथाओं के समानांतर बांग्ला कहानी का अपना खुद का रचना-विधान-शिल्प और कथ्य सर्वप्रथम कवि रवींद्रनाथ ठाकुर की कहानी 'क्षुधित पाषाण' से सन् 1890 ई. में स्वाभाविक रूप से संरचित हुआ। कहानी की आकृति और प्रकृति निश्चित हो जाने के उपरांत बांग्ला कहानी क्रमश एक से एक ऊँचाइयाँ छूती गई। ऐसे ही कथारस से परिपूर्ण बांग्ला के श्रेष्ठ कथाकारों की लोकप्रिय कहानियाँ इस संग्रह में संकलित हैं। ये कहानियाँ एक ओर जहाँ बांग्ला समाज के उत्थान, विसंगति एवं ऊहापोह को दिग्दर्शित करती हैं, वहीं रोचक होने के कारण पाठकों का भरपूर मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन भी करती हैं।

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